रविवार, 16 जून 2013
माफ करना सीखिए
दोस्तों,
सबसे पहले सुनिए मेरी आंखों देखी दो घटनाएं । पहली घटना लगभग दो साल पहले की है। जब मैं एक स्कुल के पास से गुजर रहा था, रास्ते में मैंने देखा कि एक बाइक वाला गली में से निकल रहा था । तभी सामने से एक व्यक्ति आ गया और बाइक वाले ने बाइक संभालने की कोशिश की लेकिन बाइक उस व्यक्ति के पैर से लगती हुई गिर गयी । गनीमत रही की बाइक वाले को चोट नहीं आई पर राहगीर के पैर में हल्की चोटें आई। बाइक वाले ने तुरंत राहगीर को उठाया और Sorry कहा । राहगीर ने मुस्कुराते हुए कहा " कोई बात नहीं ।" बाद में बाइक वाला उसे पास के प्राथमिक चिकित्सालय ले गया ।
दुसरी घटना अभी कुछ दिन पहले ही घटी । मैं किसी काम से Bus stand गया था । वहां मैंनें देखा कि एक ट्रक जा रहा था । आगे एक साइकिल वाला आ गया तो ट्रक रुक गया । पीछे से एक कार की ट्रक से टक्कर हो गयी । कार वाले ने ट्रक वाले से कुछ अपशब्द कहे तो ट्रक ड्राइवर भी पीछे नहीं रहा । बात बढ़ती गयी और नौबत हाथापाई तक पहुंच गयी । इतने में ट्रेफिक पुलिस भी वहां आ गयी और दोनों को साथ ले गयी ।
मेरे ख्याल मे ऊपर की दोनों घटनाएं लगभग समान ही है लेकिन कुछ शब्दों ने दोनों घटनाओं के परिणाम को ही बदल दिया । पहली घटना जहां एक मुस्कुराहट के साथ खत्म हुई, वहीं दुसरी घटना में बात मारपीट व पुलिस तक पहुंच गई ।
दोस्तों , हम सब जानते है कि इंसान गलतियों का पुतला है । हम जब तक कोई गलती नहीं करते हैं तब तक नया नहीं सीख सकते है । और नया सीखने के लिए जरुरी है , हम कुछ गलतियों को क्षमा करें । उससे भी ज्यादा जरुरी यह है कि माफी मांगना व माफ करना दोनों दिल से हो । याद रखें क्षमा का भाव हमें पशुता से मानवता की ओर ले जाता है । एक विचारक क्षमा करने का अर्थ बताते हुए कहते है कि क्षमा का मतलब बदला लेने में पूर्ण रुप से सक्षम होते हुए भी माफ कर देना । यदि हम अपने मन में किसी के प्रति द्वेष पालते है तो इससे उसको कोई हानि नहीं होती है । अपितु इसके विपरीत हम ही तनाव, चिंता व मानसिक अशांति का शिकार बनते है । अगर हम छोटी - छोटी गलतियों को माफ करना सीख जाते है तो हम अनावश्यक तनाव, चिंता, भय तथा कुंठा से बच सकते है, जिससे हमें मानसिक शांति व खुशी मिलती है । महोपाध्याय ललितप्रभ सागर कहते हैं 'प्रतिशोध तो वह विष है जो मस्तिष्क की ग्रंथियों को कमजोर करता है और मन की शांति को भस्म करता है । अगर मनुष्य यह सोचता है कि वह वैर को वैर से हिंसा को बिंसा से काट देगा तो यह उसकी भुल है । वैर- विरोध और वैमनस्यता की स्याही से सना हुआ वस्त्र खून से नहीं बल्कि प्रेम, आत्मीयता , मैत्री तथा क्षमा के साबुन से साफ किया जाता है ।'
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सारगर्भित एवं सार्थक अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और सटीक आलेख,धन्यबाद।ब्लॉग पर पधारने के लिए आपका धन्यबाद आशा है हम ऐसे ही मित्र भाव बनाये रखेंगे।
जवाब देंहटाएंजी जरुर...
जवाब देंहटाएंबेहद शानदार एंव सबक लेने वाला लेख आपका आभार।
जवाब देंहटाएं"प्रतिशोध तो वह विष है जो मस्तिष्क की ग्रंथियों को कमजोर करता है और मन की शांति को भस्म करता है"---So true lines. Thanks a lot for writing such fabulous articles.And thanks a lot for providing your valuable comments on Hindi sahitya Margdarshan.
जवाब देंहटाएंसच, बहुत सटीक आलेख
जवाब देंहटाएंआपके शब्द अनमोल हों मेरे लिए - धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसहमत आपकी बात से ... इन्सान जैसा चाहे माहोल को ढाल सकता है ... संयम और माफ करने की प्रवृति मदद देती है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सारगर्भित आलेख...अगर इंसान माफ़ करना सीख जाए तो कितनी ही परेशानियों से बचा जा सकता है...
जवाब देंहटाएंआपकी इस विचारपूर्ण रचना कि प्रविष्टि कल ब्लॉग प्रसारण http://blogprasaran.blogspot.in/ पर भी .. कृपया पधारें ..
जवाब देंहटाएंबोल से मोती , बोल से कोयला , जैसा बोलेंगे वैसा मिलेगा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, आभार
यहाँ भी पधारे
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_5.html
बहुत सटीक आलेख
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन