रविवार, 18 अगस्त 2013

जीना तो नहीं भूल गये....



दोस्तों,

आज मैं आपके साथ एक ऐसी कविता साझा करने जा रहा हूं जिसमें काव्यगत सौन्दर्यता के नाम पर कुछ विशेष नहीं है । लेकिन यह कविता आपके जीवन के प्रति नजरिये को बदल सकती है । यह कविता मैंने किसी फेसबुक पेज के वाल पर देखी थी । इसके रचनाकार के बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है । मैं इस कविता के अज्ञात लेखक के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हुं । कविता का शीर्षक है ,  "जीना तो नहीं भूल गये " .....

जीना तो नहीं भूल गये

पहले  हाई स्कूल अच्छे नंबरों से पास करने के लिये वो मरते रहे ,

फिर कॉलेज पूरा करने के लिये डटे रहे ताकि कमाना शुरु कर सकें,

फिर शादी के लिये बेचैन रहे,

और  फिर बच्चों के लिये,

फिर बच्चे बडे होकर कुछ बन जाऍ,

इस कोशिश में तपते रहे ,

फिर एक दिन वो रिटायर हो गये काम से ,

और आज जिंदगी  से रिटायर हो रहे है ,

क्योंकि मौत दरवाजे पर दस्तक दे रही है...

और अचानक उन्हें लग रहा है ,

जिंदगी की भागमभाग में वो जीना तो भूल ही गये थे ,

कही आप  तो  वो  नही...

आप अपने साथ ऐसा मत होने देना  ,

ऐ दोस्त जमकर जीना और उल्लास से जीना...

दोस्तों यह कविता आज के अधिकांश युवाओं की जिंदगी की हकीकत बयां करती है ।  व्यक्ति कल की चिंता में अपने आज को कभी सही ढ़ंग से जी नहीं पाता है । हाँ , व्यक्ति का अपने कल को लेकर सजग रहना अच्छी बात है लेकिन, उसके चक्कर में अपने आज को चिंता और तनाव जैसे नकारात्मक भावों से खराब करना सही नहीं है । चूंकि आपके आगे आने वाले जीवन को संवारने के लिए आपको पर्याप्त समय मिलता है , लेकिन बीता हुआ समय कभी वापस लौट कर नहीं आता है ।

दोस्तों इस कविता को दोबारा पढें और गौर करें कि कहीं  ये पंक्तियां आपके जिंदगी जीने के ढ़ंग को कहीं बयां तो नहीं कर रही है । अगर हाँ , तो आज से ही अपने जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदलें । अपने जीवन के हर छोटे से छोटे खुशी के पल को खुल कर जीएं और इन पलों को दुसरों के साथ साझा करें ।